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रतन सिंह (13वीं-14वीं शताब्दी) – रानी पद्मिनी की कथा से जुड़े शासक का पूरा इतिहास


रतन सिंह मेवाड़ के चित्तौड़गढ़ के शासक थे और इन्हें मुख्य रूप से
 रानी पद्मिनी की कथा के कारण जाना जाता है। यह कथा भारतीय इतिहास और साहित्य में बहुत प्रसिद्ध है, हालांकि इसकी ऐतिहासिक सत्यता पर विवाद है। यह कथा मुख्यतः मलिक मुहम्मद जायसी के महाकाव्य पद्मावत (1540 ई.) और लोककथाओं पर आधारित है। आइए इसकी पूरी जानकारी प्राप्त करें:


रतन सिंह का परिचय:

रतन सिंह मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के शासक थे और चित्तौड़गढ़ के किले पर उनका शासन था।
इनका शासनकाल 13वीं-14वीं शताब्दी (लगभग 1302-1303 ई.) में माना जाता है।
इनकी पत्नी रानी पद्मिनी थीं, जो सिंहल द्वीप (आधुनिक श्रीलंका) की राजकुमारी थीं। पद्मिनी को उनकी अद्भुत सुंदरता और बुद्धिमत्ता के लिए जाना जाता था।


रानी पद्मिनी और रतन सिंह की कथा:

पद्मिनी से विवाह:

कथा के अनुसार, रतन सिंह ने सिंहल द्वीप की यात्रा की और वहाँ पद्मिनी से विवाह किया।
पद्मिनी को उनकी सुंदरता के कारण "पद्मावती" भी कहा जाता था।

राघव चेतन का विश्वासघात:
रतन सिंह के दरबार में एक संगीतकार राघव चेतन था, जो वास्तव में एक जादूगर और छल करने वाला व्यक्ति था।
जब रतन सिंह को इसका पता चला, तो उन्होंने राघव चेतन को दरबार से निकाल दिया और उसका मुंह काला करवाकर उसे अपमानित किया।
बदले की भावना से राघव चेतन दिल्ली पहुँचा और वहाँ के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को पद्मिनी की सुंदरता के बारे में बताया।

अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण: 

पद्मिनी की सुंदरता से प्रभावित होकर खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया। खिलजी ने छल से रतन सिंह को बंदी बना लिया और पद्मिनी को अपने हरम में लाने की मांग की।

गोरा और बादल की योजना:
पद्मिनी और रतन सिंह के वफादार सेनापति गोरा और बादल ने एक योजना बनाई।
उन्होंने खिलजी को संदेश भेजा कि पद्मिनी उससे मिलने आएंगी, लेकिन उनके स्थान पर पालकी में सशस्त्र सैनिक भेजे गए। इस योजना के तहत रतन सिंह को छुड़ा लिया गया, लेकिन गोरा और बादल ने अपने प्राणों की आहुति दी।

रतन सिंह की मृत्यु और जौहर:
रतन सिंह ने खिलजी के साथ युद्ध किया, लेकिन वीरगति को प्राप्त हुए। रतन सिंह की मृत्यु के बाद, पद्मिनी सहित चित्तौड़ की सभी महिलाओं ने जौहर किया (आत्मसमर्पण करने के बजाय अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए)।

ऐतिहासिक सत्यता:gह कथा मुख्यतः लोककथाओं और साहित्य पर आधारित है।
अलाउद्दीन खिलजी के समकालीन इतिहासकारों (जैसे अमीर खुसरो) ने इस घटना का कोई उल्लेख नहीं किया है।
इतिहासकारों का मानना है कि यह कथा मलिक मुहम्मद जायसी की कल्पना हो सकती है, जिसे उन्होंने अपने महाकाव्य पद्मावत में लिखा।


कथा का महत्व:

यह कथा भारतीय साहित्य, कला और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है।
इसमें वीरतासाहसप्रेम और आत्मसम्मान के मूल्यों को दर्शाया गया है।
यह कथा आज भी राजस्थान और भारत के अन्य हिस्सों में लोकप्रिय है।


निष्कर्ष:

रतन सिंह और रानी पद्मिनी की कथा एक प्रेरणादायक और दिलचस्प कहानी है, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है। हालांकि, इसकी ऐतिहासिक सत्यता पर संदेह है, लेकिन यह कथा आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।

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