**1. प्रारंभिक जीवन**
**जन्म**: संभाजी भोसले का जन्म **14 मई 1657** को पुरंदर किले में, पुणे, महाराष्ट्र के पास हुआ था।
**माता-पिता**: वे मराठा साम्राज्य के संस्थापक **छत्रपति शिवाजी महाराज** और उनकी पहली पत्नी **महारानी सईबाई** के सबसे बड़े पुत्र थे।
**शिक्षा**: संभाजी को संस्कृत, मराठी और सैन्य रणनीति में अच्छी शिक्षा दी गई थी। उन्हें बचपन से ही युद्ध, प्रशासन और कूटनीति का प्रशिक्षण दिया गया था।
**प्रारंभिक जिम्मेदारियां**: 9 वर्ष की आयु में, एक राजनीतिक समझौते के तहत संभाजी को आंबेर के राजा जय सिंह के साथ रहने भेजा गया था। वे 1670 में मराठा साम्राज्य लौट आए।
**2. सिंहासन पर आरोहण**
छत्रपति शिवाजी महाराज की **1680** में मृत्यु के बाद, संभाजी और उनके सौतेले भाई **राजाराम** के बीच उत्तराधिकार विवाद उठा।
संभाजी विजयी हुए और **20 जुलाई 1680** को रायगढ़ किले में मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति के रूप में उनका राज्याभिषेक हुआ।
**3. युद्ध और सैन्य अभियान**
संभाजी महाराज एक वीर और कुशल योद्धा थे जिन्होंने बाहरी खतरों, विशेषकर मुगलों से मराठा साम्राज्य की रक्षा करने की अपने पिता की विरासत को जारी रखा।
**प्रमुख युद्ध और लड़ाइयां**:
**मुगलों के साथ संघर्ष**:
मुगल सम्राट **औरंगजेब** ने मराठा साम्राज्य को खतरा माना और इसे जीतने के लिए कई अभियान चलाए।
संभाजी ने मुगलों के खिलाफ कई सफल छापामार युद्ध अभियानों का नेतृत्व किया और मराठा क्षेत्रों की रक्षा की।
**वाई की लड़ाई (1687)**:
संभाजी ने इस लड़ाई में मुगल सेनापति **मुकर्रब खान** को हराया, जिससे उनकी सैन्य प्रतिभा का प्रदर्शन हुआ।
**पुर्तगालियों के साथ गठबंधन**:
संभाजी ने मुगल खतरे का मुकाबला करने के लिए गोवा में पुर्तगालियों के साथ गठबंधन किया। हालांकि, विरोधी हितों के कारण गठबंधन अल्पकालिक रहा।
**रायगढ़ किले की रक्षा**:
संभाजी ने मराठा साम्राज्य की राजधानी रायगढ़ किले की मुगल हमलों से सफलतापूर्वक रक्षा की।
**4. परिवार**
**पत्नी**: संभाजी ने **येसूबाई** से विवाह किया, जो जीवन भर उनके प्रति वफादार रहीं।
**संतान**: उनके एक पुत्र **शाहू** था, जो बाद में मराठा साम्राज्य का छत्रपति बना।
**सौतेला भाई**: उनका छोटा सौतेला भाई राजाराम, संभाजी की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया।
**5. बंदी बनाया जाना और मृत्यु**
**बंदी**: **1689** में, अपने ही एक आदमी **गनोजी शिर्के** के विश्वासघात के बाद संगमेश्वर के पास मुगलों ने संभाजी को बंदी बना लिया।
**कैद और यातना**: उन्हें बहादुरगढ़ ले जाया गया, जहां एक महीने से अधिक समय तक उन्हें यातनाएं दी गईं। भारी दबाव के बावजूद, संभाजी ने इस्लाम धर्म अपनाने या मराठा साम्राज्य के बारे में संवेदनशील जानकारी देने से इनकार कर दिया।
**मृत्यु**: **11 मार्च 1689** को औरंगजेब के आदेश पर संभाजी को क्रूरतापूर्वक मार दिया गया। उनका सिर काट दिया गया और उनके शरीर के टुकड़े कर कुत्तों को खिला दिए गए। औरंगजेब की यह क्रूरता मराठा प्रतिरोध को और मजबूत बनाने का कारण बनी।
**6. विरासत**
**धर्म के रक्षक**: संभाजी महाराज को एक निडर योद्धा के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने मुगल अत्याचार से हिंदू धर्म और मराठा साम्राज्य की रक्षा की।
**मराठा प्रतिरोध के लिए प्रेरणा**: उनकी शहादत ने मराठों को मुगलों के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित किया, जो अंततः मुगल साम्राज्य के पतन का कारण बना।
**सांस्कृतिक योगदान**: संभाजी विद्वान और कवि भी थे। उन्होंने संस्कृत में कई रचनाएं लिखीं, जिनमें राजनीति और नैतिकता पर एक ग्रंथ **बुधभूषणम** शामिल है।
**7. संभाजी महाराज के बारे में प्रमुख तथ्य**
**पूरा नाम**: संभाजी भोसले
**उपाधि**: मराठा साम्राज्य के छत्रपति
**शासनकाल**: 1680-1689
**राजधानी**: रायगढ़ किला
**प्रसिद्ध कथन**: "भले ही मेरे शरीर के टुकड़े कर दिए जाएं, मैं अपने धर्म या अपने लोगों को नहीं छोड़ूंगा।"
**8. निष्कर्ष**
छत्रपति संभाजी महाराज एक वीर शासक थे जिन्होंने अपने पिता, छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत को बनाए रखा। उनका साहस, नेतृत्व और बलिदान पीढ़ियों को प्रेरित करता रहता है। अपने छोटे शासनकाल के बावजूद, उन्होंने मराठा साम्राज्य की रक्षा और उसकी स्वतंत्रता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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