परिचय
बाजीराव प्रथम (पूरा नाम: श्रीमंत पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट) मराठा साम्राज्य के सबसे प्रभावशाली और यशस्वी सेनानायकों में से एक थे। उनका जन्म 18 अगस्त 1700 को एक चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बालाजी विश्वनाथ (प्रथम पेशवा) और राधाबाई के सबसे बड़े पुत्र थे। बाजीराव को "थोरले बाजीराव" (बड़ा बाजीराव) और "अपराजित हिंदू सेनानी" जैसे नामों से भी जाना जाता है। उन्होंने 1720 से 1740 तक छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा (प्रधानमंत्री) के रूप में कार्य किया और मराठा साम्राज्य को अभूतपूर्व ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
प्रारंभिक जीवन
बाजीराव का जन्म महाराष्ट्र के एक प्रतिष्ठित भट्ट परिवार में हुआ था। उनके पिता बालाजी विश्वनाथ, छत्रपति शाहूजी के पहले पेशवा थे, जिन्होंने मराठा साम्राज्य को मुगल आधिपत्य से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बचपन से ही बाजीराव को सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त हुआ। उन्हें घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी, भाला चलाना और रणनीति बनाने में महारत हासिल थी। वे अपने पिता के साथ सैन्य अभियानों में जाते थे, जिससे उन्हें युद्धकला और शासन का अनुभव प्राप्त हुआ। बाजीराव के छोटे भाई चिमाजी अप्पा भी उनके साथ कई अभियानों में शामिल रहे और बाद में उनके विश्वसनीय सहयोगी बने।
पेशवा के रूप में नियुक्ति
2 अप्रैल 1720 को बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद, छत्रपति शाहूजी महाराज ने मात्र 20 वर्ष की आयु में बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया। उस समय कई मराठा सरदारों ने उनकी युवावस्था के कारण इस निर्णय का विरोध किया, लेकिन शाहूजी को बाजीराव की योग्यता और साहस पर पूरा भरोसा था। बाजीराव ने अपनी नियुक्ति के बाद शीघ्र ही यह सिद्ध कर दिया कि वे इस पद के लिए पूरी तरह उपयुक्त हैं।
सैन्य अभियान और विजय
बाजीराव प्रथम का 20 साल का शासनकाल (1720-1740) मराठा साम्राज्य के लिए स्वर्णिम काल माना जाता है। उन्होंने 40 से अधिक युद्ध लड़े और कभी हारे नहीं। उनकी रणनीति, तेजी और नेतृत्व कौशल ने उन्हें अपराजेय बना दिया। यहाँ उनके प्रमुख अभियानों का उल्लेख है:
- पालखेड़ का युद्ध (1728)
बाजीराव ने हैदराबाद के निज़ाम-उल-मुल्क को पराजित किया, जो मराठों का कट्टर शत्रु था। इस जीत के बाद निज़ाम को चौथ और सरदेशमुखी कर देना पड़ा, जिससे मराठा प्रभाव दक्षिण भारत में बढ़ा। - मालवा और बुंदेलखंड पर विजय (1728-1729)
बाजीराव ने मुगल सेनानायकों गिरधर बहादुर और दया बहादुर को हराकर मालवा पर कब्जा किया। इसके बाद उन्होंने मुहम्मद खान बंगश को पराजित कर बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल की मदद की। कृतज्ञता में छत्रसाल ने अपनी पुत्री मस्तानी का विवाह बाजीराव से करवाया और अपने राज्य का एक हिस्सा मराठों को सौंप दिया। - दिल्ली अभियान (1737)
बाजीराव का सबसे साहसिक अभियान दिल्ली पर हमला था। उन्होंने मुगल बादशाह को चुनौती दी और दिल्ली पर मराठा झंडा फहराया। इस अभियान ने मुगलों को उनकी कमजोरी का अहसास कराया। - भोपाल का युद्ध (1737)
निज़ाम-उल-मुल्क को एक बार फिर हराकर बाजीराव ने मराठा शक्ति को सुदृढ़ किया। - पुर्तगालियों के खिलाफ विजय (1739)
बाजीराव और उनके भाई चिमाजी अप्पा ने पुर्तगालियों को बेसिन (वसई) से खदेड़कर उनकी शक्ति को समाप्त किया। इसे "बेसिन की विजय" के नाम से जाना जाता है।
व्यक्तित्व और नेतृत्व
बाजीराव 6 फीट लंबे, बलिष्ठ और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी तांबई त्वचा और तेजस्वी चेहरा उनके साहस को दर्शाता था। वे एक कुशल घुड़सवार थे और घोड़े पर बैठकर भाला व तलवार चलाने में अद्वितीय थे। उनके चार घोड़े—नीला, गंगा, सारंगा और औलख—उनके प्रिय थे, जिनकी देखभाल वे स्वयं करते थे। बाजीराव अपनी सेना को कठोर अनुशासन में रखते थे और अपने प्रेरक भाषणों से सैनिकों में जोश भरते थे। वे न्यायप्रिय थे और ऊँच-नीच के भेदभाव के खिलाफ थे।
बाजीराव और मस्तानी
बाजीराव की प्रेम कहानी मस्तानी के साथ प्रसिद्ध है। मस्तानी, बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल की पुत्री थीं, जिनका विवाह 1731 में बाजीराव से हुआ। उनकी पहली पत्नी काशीबाई थीं, जिनसे उनके तीन पुत्र—बालाजी बाजीराव (नाना साहेब), रघुनाथराव और जनार्दन—थे। मस्तानी से उनके एक पुत्र, शमशेर बहादुर (कृष्णराव), का जन्म हुआ। मस्तानी के प्रति बाजीराव का प्रेम उनके जीवन का एक विवादास्पद पहलू रहा, जिसके कारण उनके परिवार और मराठा समाज में विरोध उत्पन्न हुआ।
मृत्यु
28 अप्रैल 1740 को, बाजीराव की अचानक मृत्यु हो गई। वे उस समय खरगांव (वर्तमान मध्य प्रदेश में रावेरखेड़ी) में थे, जहाँ एक अभियान के दौरान उन्हें तेज बुखार हुआ। उनकी मृत्यु मात्र 40 वर्ष की आयु में हुई, जिसने मराठा साम्राज्य को गहरा झटका दिया। उनकी समाधि रावेरखेड़ी में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है।
योगदान और विरासत
बाजीराव ने मराठा साम्राज्य को दक्षिण में कटक से लेकर उत्तर में अटक तक विस्तारित किया। उन्होंने "हिंदू पद पादशाही" की स्थापना का सपना देखा और मुगलों, निज़ाम, पुर्तगालियों और अन्य शत्रुओं को परास्त कर मराठा शक्ति को चरम पर पहुँचाया। उनके शासनकाल में पुणे को मराठा साम्राज्य की राजधानी बनाया गया, जो पहले सतारा थी। उनकी दूरदर्शिता और सैन्य कुशलता ने मराठा साम्राज्य को एक संगठित और शक्तिशाली राज्य बनाया, जिसका प्रभाव उनके पुत्र बालाजी बाजीराव के शासनकाल में और बढ़ा।
ऐतिहासिक महत्व
बाजीराव को विश्व इतिहास में एकमात्र ऐसा योद्धा माना जाता है, जिसने अपने जीवनकाल में कोई भी युद्ध नहीं हारा। ब्रिटिश सेनापति जनरल मॉन्टगोमरी ने अपनी पुस्तक "हिस्ट्री ऑफ वॉरफेयर" में बाजीराव की तेज आक्रमण शैली की प्रशंसा की, जिसे बाद में द्वितीय विश्व युद्ध में "ब्लिट्जक्रिग" के रूप में अपनाया गया।
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