जीवन
बाजीराव प्रथम (Bajirao I) का जन्म 18 अगस्त 1700 में हुआ था। उनके पिता का नाम बालाजी विश्वनाथ और माता का नाम राधाबाई था। बाजीराव ने अपने पिता के साथ सैन्य अभियानों में जाना किया और 1720 में उनके पिता की मृत्यु के बाद, 20 साल की आयु में पेशवा के पद पर नियुक्त किया गया।
उपलब्धियां
बाजीराव प्रथम ने मराठा साम्राज्य को उत्तर में विस्तार किया और यह माना जाता है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में कोई भी युद्ध नहीं हारा। उन्होंने डेक्कन के 6 प्रान्तों से कर वसूली के अधिकार को वापसी की और मराठा ध्वज को दिल्ली के दीवारों में लहराते हुए देखने का इरादा रखा।
युद्ध
बाजीराव प्रथम ने अपने करियर के दौरान कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े, जिनमें से सबसे प्रमुख युद्ध डेक्कन के युद्ध थे। उन्होंने निज़ाम-उल-मुल्क को बाध्य कर दिया और उत्तर भारत में मराठा साम्राज्य का विस्तार किया।
पालखेड़ की लड़ाई (1728)
विजय: बाजीराव ने मराठों को निज़ाम ऑफ हैदराबाद पर निर्णायक जीत दिलाई। इस लड़ाई ने दक्कन क्षेत्र में मराठा वर्चस्व स्थापित किया।
परिणाम: निज़ाम को एक शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया, जिसने छत्रपति शाहू को एकमात्र मराठा शासक के रूप में मान्यता दी और मराठों को दक्कन से चौथ और सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार दिया।
दिल्ली की लड़ाई (1737)
विजय: बाजीराव ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और लाल किले पर मराठा ध्वज फहराया, जिससे उनकी महत्वपूर्ण जीत हुई।
परिणाम: यह विजय बाजीराव के सैन्य करियर की चोटी थी और मराठा साम्राज्य की शक्ति का प्रदर्शन किया।
भोपाल की लड़ाई (1737)
विजय: बाजीराव ने मुगल-निज़ाम-अवध के नवाब की संयुक्त सेना को पराजित किया।
परिणाम: मराठों ने मालवा के महत्वपूर्ण क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
मालवा का मराठा विजय (1730)
विजय: बाजीराव ने मराठों को मालवा पर विजय दिलाई, स्थानीय शासकों को हराकर मराठा नियंत्रण स्थापित किया।
परिणाम: मालवा मराठा साम्राज्य का हिस्सा बन गया और इसके विस्तार में योगदान दिया।
लुसो-मराठा युद्ध (1729-1732)
विजय: बाजीराव ने गोवा और दमन में पुर्तगाली क्षेत्रों का मराठा आक्रमणों से सफलतापूर्वक बचाव किया।
परिणाम: युद्ध एक संधि के साथ समाप्त हुआ, जिसने पुर्तगालियों को उनके क्षेत्रों को बनाए रखने की अनुमति दी, लेकिन मराठों को श्रद्धांजलि देना पड़ा।
दभोई की लड़ाई (1731)
विजय: बाजीराव ने विद्रोही सरदार त्र्यंबक राव डाभाडे को पराजित किया।
परिणाम: मराठाओं ने गुजरात में अपना अधिकार पुनः स्थापित किया और क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले लिया।
हार और चुनौतियाँ
टाकलोटा की लड़ाई (1739)
हार: बाजीराव ने मुगल साम्राज्य और निज़ाम ऑफ हैदराबाद की संयुक्त सेना के खिलाफ एक हार का सामना किया।
परिणाम: इस असफलता के बावजूद, बाजीराव की कुल सैन्य उपलब्धियों ने इस एकल हार को छाया में डाल दिया।
बूंदी की घेराबंदी (1737)
हार: मराठों को एक राजपूत राज्य, बूंदी पर कब्जा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा।
परिणाम: हालांकि वे बूंदी पर कब्जा करने में सफल नहीं हुए, बाजीराव के प्रयासों का हिस्सा एक बड़े रणनीति का हिस्सा था, जो राजपूताना में मराठा प्रभाव का विस्तार करना था।
कुल प्रभाव
बाजीराव पेशवा के सैन्य अभियानों ने मराठा साम्राज्य को महत्वपूर्ण रूप से विस्तारित किया, इसे 18वीं सदी के दौरान भारत में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया। उनकी रणनीतिक कुशलता और तीव्र सैन्य युद्ध तकनीकों ने उन्हें अपने समय के सबसे महान सैन्य जनरलों में से एक का खिताब दिलाया।
मृत्यु
बाजीराव प्रथम का निधन 28 मार्च 1740 में हुआ। उनकी मृत्यु के समय वे बल्लाल बाजीराव के नाम से जाने जाते थे। उनकी मृत्यु के कारण मराठा साम्राज्य में एक विशाल खाड़ी उत्पन्न हुई।
प्रेम
बाजीराव प्रथम की पत्नियां काशीबाई और मस्तानीबाई थीं। उनके बच्चे नानासाहेब, रामचंद्र, रघुनाथ और जनार्दन थे। बाजीराव का प्रेम कहानी उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
आपको बाजीराव प्रथम के बारे में क्या और जानना है?
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